रिश्तों की गर्मी का सबब काश पुराना होता
इस बार पडोसी का वादा न फ़साना होता
तमाम बार वही बात वही फलसफे
कभी पुरानी टीस कभी रतजगे
कही तो यादो का कारवा सुस्तायेगा
कही वो अपनी आदत से बाज़ आएगा
एक बार वो गैरत भी जाग जायेगी
यक़ीनन सुबह का भूला शाम को लौट आएगा
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