मेरे सहर को महफूज़ रखना.मंदिर मस्जिद से इसे दूर रखना
यहाँ की फिजा का रंग बसंती है,यहाँ के दरवाज़े भी अकबरी है
वाजिद अली साह की वो इन्दर सभा
गंगा जमुनी तहजीब की वो सफा
नवाबियत के अफसाने और गीत
सहरे लखनऊ में मिलता है मोहब्बत का संगीत
महज़ कुछ लोगो का लखनऊ नहीं ये
हिन्दू मुसलमानों का सहर नहीं ये
ये जन्नत है इंसानों की, मोहब्बत की पैगामो की
ये लछमनपुरी है, ये है अपना लखनऊ
Wednesday, September 29, 2010
Tuesday, September 28, 2010
क्या होगा मंदिर, मस्जिद, मीनारों का
पत्थरो के भीतर कही भगवान बसते है
उन्हें देखो ऊपर की तरफ आख़े गड़ाए
खुदा की आस में आसमान तकते है
ये मंदिर वो मस्जिद, ये पीर वो फकीर
लालची नजरो से इन्सान तकते है
गर मंदिर बना तो क्या हासिल होगा
गर मस्जिद बनी तो क्या खो दोगे
वक्त बहुत है लौट चलो घरो की तरफ
आख उठा कर देखो अपनों की तरफ
इंसान बनना बहुत आसन है, बनो
न हिन्दू बनो न मुस्लमान बनो
पत्थरो के भीतर कही भगवान बसते है
उन्हें देखो ऊपर की तरफ आख़े गड़ाए
खुदा की आस में आसमान तकते है
ये मंदिर वो मस्जिद, ये पीर वो फकीर
लालची नजरो से इन्सान तकते है
गर मंदिर बना तो क्या हासिल होगा
गर मस्जिद बनी तो क्या खो दोगे
वक्त बहुत है लौट चलो घरो की तरफ
आख उठा कर देखो अपनों की तरफ
इंसान बनना बहुत आसन है, बनो
न हिन्दू बनो न मुस्लमान बनो
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