Friday, May 25, 2012

धुप में नंगे पाँव, आहिस्ता आहिस्ता... डगमगाती चलती है उम्मीद पाले जिन्दगी'... कभी रिक्शे पर तो कभी हाथ गाड़ी पर... दोनों हाथों से रास्ता बनाती चलती है जिन्दगी... मंजिल तक पहुचने से पहले एक नज़र की भूखी... रहनुमाओं की रहबर बनती चलती है जिन्दगी... गरीबी सिर्फ भूख और प्यास की होती तो क्या था... विचारों की गरीबी ढोती चलती है जिन्दगी... हर कदम हमनवाज़ मिल ही जाते हैं... कहीं हम्नवाज़ों से भला चलती है जिन्दगी... कितना झुकूं, कितना सम्ह्लू और कितना... डगमगाती चलती है उम्मीद पाले जिन्दगी...

Thursday, May 24, 2012

गजब है इंसान भी

गजब है इंसान भी... लगातार बार बार संघर्ष... अपने आप से और उस समाज से... संघर्षों की लम्बी फेहरिश्त, राशन की रसीद की तरह... कभी तेल, कभी नून, कभी लकड़ी के झंझावत... उसमे फंसा कसमसाता, रास्ता ढूंढ़ता, कन्धों से कन्धा रगड़ता... गजब है इंसान भी. गरीबी की भाग्यरेखा गदोरी में समेटे... मुट्ठी बांधे, सब पाने की अभिलाषा पाले... रोज़ निकालना और घर वापस आना, हारे हुवे सेनानी की तरह... गजब है इन्सान भी....