Wednesday, September 7, 2011

हकीकत का ख्वाब बनना बात किताबी है
आतंकवाद से लड़ने की बात किताबी है
अपनों का सपनो में आना बात किताबी है
बैठे बैठे कल हो जाना बात किताबी है
एक झटके में सर से उठते हाथ हकीकत में
सरकारों के फरेब बने दस्तूर हकीकत में
उस बेचारी को कौन बताये पोंछो सुर्ख सुहाग को
धमाकों में खाख हो गये ख्वाब हकीकत में
अम्मा जोह रही है राह ज़माने से
बच्चे उदास हैं पिता के न आने से
पत्नी ने खबर सुनी है आज धमाकों की
मनौती मांग रही है घर वापस आने की
सरकार लिपटी है फरेब के चादर में
नाप तौल मची है मरने वालों में
एक दर्जन से ज्यादा मर गये बड़ा धमाका है
सरकारी नज़रों में ये भी महज एक हादसा है

Friday, May 13, 2011

जिसे भी देखो वही कहे है...
हम निःस्वार्थ मित्र है तेरे...
थोड़ा सा बस खून पियेगे...
और साथ रहेंगे तेरे...
मैंने भी मोहताज़ कर दिया..
उनको अपना खून पिला कर...
चौराहों, सड़को गलियो में...
उनको अपना हाथ थमा कर...

Thursday, April 14, 2011

रिश्तों की गर्मी का सबब काश पुराना होता
इस बार पडोसी का वादा न फ़साना होता
तमाम बार वही बात वही फलसफे
कभी पुरानी टीस कभी रतजगे
कही तो यादो का कारवा सुस्तायेगा
कही वो अपनी आदत से बाज़ आएगा
एक बार वो गैरत भी जाग जायेगी
यक़ीनन सुबह का भूला शाम को लौट आएगा