tag:blogger.com,1999:blog-82332344717350561732024-03-13T11:21:52.843-07:00shukulpanditसीमाओं में बंधे हुए हो,
फिर तुम ज्ञानी कैसे हो.
स्वयं स्वार्थ की मूर्ती हो,
औरों को स्वार्थी कहते हो...अंशुमान शुक्लhttp://www.blogger.com/profile/09666492678043519524noreply@blogger.comBlogger54125tag:blogger.com,1999:blog-8233234471735056173.post-81183766019850892442018-06-28T20:15:00.000-07:002018-06-28T20:15:07.383-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
टोपियाँ कभी कभार जिन्दा होती हैं। एक खास सर टोपियों में जान फूंकता है।कभी पहन कर तो कभी न पहन कर। टोपियों से भी देश की निर्पेक्षता है। न पहनने पर मुबाहसे-बहस होती है।टोपियाँ कभी सर नहीं चुन पातीं।अब हांथ टोपियों के लिए सर चुनते हैं।किसी के कहने पर किसी के लिए।वो सियासी ताना-बाना बुनते हैं।टोपियाँ कभी कभार जिन्दा होती हैं।<br />
अंशुमान शुक्ल</div>
अंशुमान शुक्लhttp://www.blogger.com/profile/09666492678043519524noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8233234471735056173.post-41751494233599929362017-12-14T04:59:00.001-08:002019-02-14T02:29:38.072-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
सपने बाँटकर हर रोज़ गुज़र जाती है रात। हक़ीक़त और फँसाने में बड़ा फ़र्क़ होता है।। अंशुमान शुक्ल</div>
अंशुमान शुक्लhttp://www.blogger.com/profile/09666492678043519524noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8233234471735056173.post-10158354247890016662017-12-14T04:58:00.001-08:002017-12-14T04:58:09.104-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
हमसे क्यूँ माँगते हो रहबरी का हिसाब। चाँद जैसी ही होती है गोल-गोल रोटी।। अंशुमान शुक्ल </div>
अंशुमान शुक्लhttp://www.blogger.com/profile/09666492678043519524noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8233234471735056173.post-20531693561128042012017-12-14T04:57:00.003-08:002017-12-14T04:57:37.098-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
शहर ने बढ़ाया जब गाँव की ओर क़दम। हल खल चूल्हा चौकी सब दफ़ा हो गये।। अंशुमान शुक्ल</div>
अंशुमान शुक्लhttp://www.blogger.com/profile/09666492678043519524noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8233234471735056173.post-78345227304417015472017-12-14T04:57:00.001-08:002017-12-14T04:57:08.654-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
रोज़ सिसक कर मर रहे हैं गाँव खेत खलिहान। कहाँ से लाओगे तुम गृहस्थी का सामान।। अंशुमान शुक्ल</div>
अंशुमान शुक्लhttp://www.blogger.com/profile/09666492678043519524noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8233234471735056173.post-73967353735205998142017-12-14T04:56:00.002-08:002017-12-14T04:56:32.285-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
गाँव जब से शहर के फुटपाथों पर आ गया। रिश्तों की सोंधी सुगन्ध कहीं गुम हो गई।। अंशुमान शुक्ल</div>
अंशुमान शुक्लhttp://www.blogger.com/profile/09666492678043519524noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8233234471735056173.post-11411132463319815692016-07-31T20:27:00.001-07:002016-07-31T20:27:10.993-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="_1dwg _1w_m" style="font-family: inherit; padding: 12px 12px 0px;">
<div class="_5pbx userContent" data-ft="{"tn":"K"}" id="js_5" style="font-family: inherit; font-size: 14px; line-height: 1.38; overflow: hidden;">
<div style="display: inline; font-family: inherit;">
उत्तर प्रदेश में सब अमन चैन है। सड़क पर लूटती आबरू, खाकी मौन है। उत्तर प्रदेश में सब अमन चैन है। मुख्यमंत्री की पुलिस को धुन रहे कौन हैं। कार में खद्दर-खाकी साधे मौन है। उत्तर प्रदेश में सब अमन चैन है। जिले के थानों का रेट फिक्स है। हर जुबान पर इस सच का जिक्र है। अब इसकी परवाह करता कौन है। उत्तर प्रदेश में सब अमन चैन है। एक बिरादर एक ही जात। थानों पर बैठे स्वजात। समाजवाद का देखो कैसा ढ़ोंग है। उत्तर प्रदेश में सब अमन चैन है। जहर बुती शराब से मर रहे लोग हैं। अपराधियों के हाथों मर रही पुलिस। घर में शोक है। मंत्री बक रहे अपशब्द, गजब ढ़ोंग है। उत्तर प्रदेश में सब अमन चैन है। आ रहा है चुनाव हिसाब देना होगा। झठा सच बताने का अपमान सहना होगा। सत्ताच्युत होने का समय अधिक निकट है। तारो तारनहार समस्या बड़ी बिकट है। लोग बताएंगे दूध में कितना फेन है। उत्तर प्रदेश में सब अमन चैन है ...अंशुमान शुक्ल</div>
<div class="_5wpt" style="border-left-color: rgb(220, 222, 227); border-left-style: solid; border-left-width: 2px; font-family: inherit; padding-left: 12px;">
</div>
</div>
<div class="_3x-2" style="font-family: inherit;">
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</div>
</div>
</div>
<div style="font-family: inherit;">
<form action="https://www.facebook.com/ajax/ufi/modify.php" class="commentable_item" data-ft="{"tn":"]"}" id="u_ps_0_0_b" method="post" rel="async" style="margin: 0px; padding: 0px;">
<div class="_sa_ _5vsi _ca7 _192z" style="color: #90949c; font-family: inherit; margin-top: 12px; padding-bottom: 4px; position: relative;">
<div class="_37uu" style="font-family: inherit;">
<div data-reactroot="" style="font-family: inherit;">
<div class="_3399 _a7s clearfix" style="border-top-color: rgb(229, 229, 229); border-top-style: solid; border-top-width: 1px; clear: both; font-family: inherit; margin: 0px 12px; padding-top: 4px; zoom: 1;">
<div class="_524d" style="font-family: inherit;">
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</div>
</div>
अंशुमान शुक्लhttp://www.blogger.com/profile/09666492678043519524noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8233234471735056173.post-73170417352141006342016-07-18T23:54:00.002-07:002016-07-18T23:54:32.089-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: left;">
कड़ुवा सच </div>
<div style="text-align: left;">
जीवन एक कड़ुवा सच, स्वार्थ में लिपटा</div>
<div style="text-align: left;">
अपनों तक सिमटा परिभाषित किन्तु कुंठित </div>
<div style="text-align: left;">
अपनों की सूचि में बारी बारी सभी पराये<br />
स्वार्थ सिद्धि के समीकरण कलेजे से लगाए<br />
झुलस चुकी आत्मा को सफेदी से छुपाये<br />
जीवन एक कडुवा सच...<br />
परिधि पर नाचता, धुरी सधा<br />
उदय से अस्ताचल तक का सफर<br />
सपनो के बाजार में बिकता हर पल<br />
इंसान होने का दारुण दर्द' इंसानियत बे पर्द<br />
जीवन एक कडुवा सच...<br />
<div>
<br /></div>
</div>
</div>
अंशुमान शुक्लhttp://www.blogger.com/profile/09666492678043519524noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8233234471735056173.post-72383265278176470582016-07-18T23:26:00.001-07:002016-07-18T23:26:23.444-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
शाम ढली, उड़ चले बगुले <div>
सूरज का पेट फाड़, घोसलों की ओर </div>
<div>
कुछ अंतिम पल जूझता प्रकाश </div>
<div>
अन्धकार के बाद सुबह होगी </div>
<div>
अँधेरी चादर में आकाश के नीचे </div>
<div>
तारों का त्रिपाल तान कर </div>
<div>
मैं करता सुबह का इंतज़ार </div>
<div>
रात कटती नहीं, बहुत लम्बी है </div>
<div>
एक झपकी, झूमता शरीर, नींद की गोद </div>
<div>
यक ब यक फुसफुसाते बगुले </div>
<div>
अँधेरे से आती प्रकाश की आस </div>
<div>
सब बदल गया, हार गई कालिमा </div>
<div>
सुबह होती है, सूरज पक्षपात नहीं करता </div>
</div>
अंशुमान शुक्लhttp://www.blogger.com/profile/09666492678043519524noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8233234471735056173.post-5455877074919201722016-07-16T03:45:00.003-07:002016-07-16T03:45:31.765-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
हमने देखे हैं बाबर-अकबर के दौर<br />
राम भी हमारे हैं, रहीम भी हमारे हैं<br />
हमारी सिरजमीं पर उभरा है ताजमहल<br />
शिव भी हमारे हैं बुद्ध भी हमारे हैं<br />
हमारी मीट्टी ने पैदा ही गंगा जमुनी तहज़ीब<br />
तुलसी भी हमारे हैं कबीर भी हमारे हैं<br />
यहाँ आईयेगा तो सबकुछ पाइयेगा<br />
हम हैं उत्तर प्रदेश हम सबसे निराले हैं </div>
अंशुमान शुक्लhttp://www.blogger.com/profile/09666492678043519524noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8233234471735056173.post-28966378634290357432016-07-16T03:35:00.000-07:002016-07-16T03:35:05.623-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
जिंदगी का न हिसाब है न किताब है...<br />
वो तो बस एक खुली हुई किताब है....<br />
<br /></div>
अंशुमान शुक्लhttp://www.blogger.com/profile/09666492678043519524noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8233234471735056173.post-77362074075797625932012-05-25T08:14:00.002-07:002012-05-25T08:14:59.927-07:00धुप में नंगे पाँव, आहिस्ता आहिस्ता...
डगमगाती चलती है उम्मीद पाले जिन्दगी'...
कभी रिक्शे पर तो कभी हाथ गाड़ी पर...
दोनों हाथों से रास्ता बनाती चलती है जिन्दगी...
मंजिल तक पहुचने से पहले एक नज़र की भूखी...
रहनुमाओं की रहबर बनती चलती है जिन्दगी...
गरीबी सिर्फ भूख और प्यास की होती तो क्या था...
विचारों की गरीबी ढोती चलती है जिन्दगी...
हर कदम हमनवाज़ मिल ही जाते हैं...
कहीं हम्नवाज़ों से भला चलती है जिन्दगी...
कितना झुकूं, कितना सम्ह्लू और कितना...
डगमगाती चलती है उम्मीद पाले जिन्दगी...अंशुमान शुक्लhttp://www.blogger.com/profile/09666492678043519524noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8233234471735056173.post-23211406875729479822012-05-24T05:49:00.004-07:002012-05-24T06:07:59.721-07:00गजब है इंसान भीगजब है इंसान भी...
लगातार बार बार संघर्ष...
अपने आप से और उस समाज से...
संघर्षों की लम्बी फेहरिश्त, राशन की रसीद की तरह...
कभी तेल, कभी नून, कभी लकड़ी के झंझावत...
उसमे फंसा कसमसाता, रास्ता ढूंढ़ता, कन्धों से कन्धा रगड़ता...
गजब है इंसान भी. गरीबी की भाग्यरेखा गदोरी में समेटे...
मुट्ठी बांधे, सब पाने की अभिलाषा पाले...
रोज़ निकालना और घर वापस आना, हारे हुवे सेनानी की तरह...
गजब है इन्सान भी....अंशुमान शुक्लhttp://www.blogger.com/profile/09666492678043519524noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8233234471735056173.post-78397142641881028032011-09-07T09:43:00.001-07:002011-09-07T09:43:50.042-07:00हकीकत का ख्वाब बनना बात किताबी है<br />आतंकवाद से लड़ने की बात किताबी है<br />अपनों का सपनो में आना बात किताबी है<br />बैठे बैठे कल हो जाना बात किताबी है<br />एक झटके में सर से उठते हाथ हकीकत में <br />सरकारों के फरेब बने दस्तूर हकीकत में<br />उस बेचारी को कौन बताये पोंछो सुर्ख सुहाग को<br />धमाकों में खाख हो गये ख्वाब हकीकत में <br />अम्मा जोह रही है राह ज़माने से <br />बच्चे उदास हैं पिता के न आने से <br />पत्नी ने खबर सुनी है आज धमाकों की <br />मनौती मांग रही है घर वापस आने की <br />सरकार लिपटी है फरेब के चादर में <br />नाप तौल मची है मरने वालों में <br />एक दर्जन से ज्यादा मर गये बड़ा धमाका है<br />सरकारी नज़रों में ये भी महज एक हादसा हैअंशुमान शुक्लhttp://www.blogger.com/profile/09666492678043519524noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8233234471735056173.post-20323305938653465612011-05-13T11:01:00.000-07:002011-05-13T11:03:09.465-07:00जिसे भी देखो वही कहे है... <br />हम निःस्वार्थ मित्र है तेरे...<br />थोड़ा सा बस खून पियेगे...<br />और साथ रहेंगे तेरे...<br />मैंने भी मोहताज़ कर दिया..<br />उनको अपना खून पिला कर...<br />चौराहों, सड़को गलियो में... <br />उनको अपना हाथ थमा कर...अंशुमान शुक्लhttp://www.blogger.com/profile/09666492678043519524noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8233234471735056173.post-55951951447526373272011-04-14T02:22:00.000-07:002011-04-14T02:23:57.819-07:00रिश्तों की गर्मी का सबब काश पुराना होता<br />इस बार पडोसी का वादा न फ़साना होता<br />तमाम बार वही बात वही फलसफे <br />कभी पुरानी टीस कभी रतजगे<br />कही तो यादो का कारवा सुस्तायेगा <br />कही वो अपनी आदत से बाज़ आएगा<br />एक बार वो गैरत भी जाग जायेगी<br />यक़ीनन सुबह का भूला शाम को लौट आएगाअंशुमान शुक्लhttp://www.blogger.com/profile/09666492678043519524noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8233234471735056173.post-11767321640487262652010-12-16T05:16:00.000-08:002010-12-16T05:18:00.463-08:00बड़ा गजब है देश हमारा वाह भाई वाह<br />करूणानिधि का पेट गजब है वाह भाई वाह<br />कलमाड़ी की तोंद नहीं है फिर भी देखो <br />दाड़ी पर काली कमाई लगी है वाह भाई वाह<br />मनमोहन के अर्थशास्त्र के क्या कहने है <br />भूखो का ये प्रेत नृत्य वाह भाई वाह <br />सरकारों का क्या कहना है सब अमन चैन है <br />तम्बू में है रैनबसेरा वाह भाई वाह<br />चीनी हिंदी बोल रहा है वाह भाई वाह<br />अरुणाचल को लील रहा है वाह भाई वाह<br />अब भी बाज़ आ जाओ बाजीगरी से<br />मनमोहन सरकार तुम्हारी वाह भाई वाहअंशुमान शुक्लhttp://www.blogger.com/profile/09666492678043519524noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8233234471735056173.post-72472150134775855132010-10-21T08:37:00.001-07:002010-10-21T08:37:37.803-07:00रईसी देखना शौक किसका है, गरीबी किसको भाती है..<br />उनकी चाहत किसी की मज़बूरी का माखोल उड़ाती है..<br />हमे कुछ शौक, कुछ लाचारी, कुछ बेगानापन दीखता है..<br />अमीरी उनको थाती है, गरीबी मेरी साथी है..<br />हमे भूका रहना आता है, हमे इसकी आदत है..<br />कही कोई हवेली कभी लंगर चलाती है..<br />रईसी देखना शौक किसका है, गरीबी किसको भाती है..<br />अमीरी देख कर वो हस पड़े, पूछा किये आब क्या करे..<br />हमे जो नहीं दीखता वो अमीरी दिखाती है..<br />गरीबी नाम है उसका जो सब के दिल में रहती है<br />अमीरी न समझ है, आती है जाती है..<br />रईसी देखना शौक किसका है, गरीबी किसको भाती है..अंशुमान शुक्लhttp://www.blogger.com/profile/09666492678043519524noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8233234471735056173.post-40254136266452150322010-10-12T11:40:00.001-07:002010-10-12T11:40:37.465-07:00तुम मोहब्बत की इक ग़ज़ल हो या हो जज्बात<br />तुझे पाने की उम्मीद बड़ी लगती है..<br />तेरा आना इक ख्वाब से ज्यादा क्या है..<br />तेरा होना कोई चीज़ बड़ी लगती है..<br />तुम रूह में उतरे कुछ इस कदर यारा..<br />की अब जिस्म से ये रूह बड़ी लगती है..<br />तुम्हे चाहू, तुम्हे पाऊ तुम्हे अपनाऊ कैसे <br />तेरे कंधे पर मेरे आसुओ की हर बूंद बड़ी लगती है...अंशुमान शुक्लhttp://www.blogger.com/profile/09666492678043519524noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-8233234471735056173.post-66164057232757657292010-10-11T06:40:00.001-07:002010-10-11T06:40:56.417-07:00चल हट गरीब कही के, खुद को हिन्दुस्तानी बताता है.. <br />..मैला कुचैला पहन कर सड़क पर निकल आता है ..<br />...हाथो में कटोरा चेहरे पर मैल जमी है...<br />..गरीब है फिर भी देखो छाती कैसी तनी है..<br />...तुम्हारे लिये न कुछ था न है न रहेगा..<br />...तू वो खोटा सिक्का है जो सिर्फ चुनाव में चलेगा.. <br />.. तेरी बीबी भूखी, बच्चे भूखे, माँ भूखी, भाई भूखे..<br />तेरी किस्मत में कटोरा है, तेरे अरमान सूखे है..<br />..तू दुर्भाग्य है देश का, तुझको ही हटाना होगा..<br />उसके बाद बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर को बनाना होगा...अंशुमान शुक्लhttp://www.blogger.com/profile/09666492678043519524noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8233234471735056173.post-48520793229656271392010-10-09T21:00:00.000-07:002010-10-09T21:01:07.498-07:00ओस की बूंद पर चमकती कुनकुनी धूप,, <br />उमीद की घास को और हरा करती है,,<br />ओस के साथ पलते सपने भी कुनकुने ,,<br />उनकी नाजुक कलाईयों की तरह अनमने,, <br />कुछ पाने की अभिलाषा में तल्लीन,, <br />तन्हाई की आगोश में लिपटे, सिमटे,, <br />मंद मंद बहती ठंडी बयार, सिहराती,,<br />चुपचाप जवानी की तरफ बढ जाती,, <br />सुबह से शाम, शाम से रात, यही चक्र है,, <br />जीवन का. यही फलसफा भी, खुद का,,,अंशुमान शुक्लhttp://www.blogger.com/profile/09666492678043519524noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8233234471735056173.post-60860962641761675442010-10-06T23:27:00.001-07:002010-10-06T23:27:23.166-07:00मुस्लमान मस्जिद से और हिन्दू मंदिर से, कब तक जाना जायेगा,,,, <br />क्या भारत में मौलाना और पंडित ही पहचाना जाएगा,,,,<br />मस्जिद और मंदिर में फसेगी कौम की प्रतिष्ठा,,,, <br />भूल गये देश के प्रति निष्ठा,,,,<br />मुस्लमान और हिदू को वोट बैंक न बनाओ,,,, <br />मंदिर मस्जिद के झगडे में इनको मत उलझाव,,,,<br />विकास का सपना इनको भी देखने दो,,,,<br />इंसान है ये इनको इंसान बने रहने दो,,,,अंशुमान शुक्लhttp://www.blogger.com/profile/09666492678043519524noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8233234471735056173.post-82324294982657731412010-10-05T23:17:00.000-07:002010-10-05T23:18:11.427-07:00भूखो को रोटी मिलना एक सपना है<br />इनको पलने दो, जवानी तक<br />रोज़गार की बाते, शिक्षा की शिक्षा <br />सरकारी काम से ज्यादा भी कुछ है<br />हिंदुस्तान नारों को बनाने और भुलाने वाला <br />रोटी कपड़ा और मकान का ख्वाब दिखाने वाला<br />जय जवान जय किसान को क्यों भूल गया<br />सपने देखने में कोई मनाही नहीं <br />सरकार और सत्ता यहाँ सपना देखती है<br />इसी लिये सरे जहा से अच्छा हिंदुस्तान हमारा गाती हैअंशुमान शुक्लhttp://www.blogger.com/profile/09666492678043519524noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8233234471735056173.post-30439062642580680782010-09-29T07:46:00.001-07:002010-09-29T07:46:30.807-07:00मेरे सहर को महफूज़ रखना.मंदिर मस्जिद से इसे दूर रखना<br />यहाँ की फिजा का रंग बसंती है,यहाँ के दरवाज़े भी अकबरी है<br />वाजिद अली साह की वो इन्दर सभा<br />गंगा जमुनी तहजीब की वो सफा<br />नवाबियत के अफसाने और गीत<br />सहरे लखनऊ में मिलता है मोहब्बत का संगीत<br />महज़ कुछ लोगो का लखनऊ नहीं ये<br />हिन्दू मुसलमानों का सहर नहीं ये<br />ये जन्नत है इंसानों की, मोहब्बत की पैगामो की<br />ये लछमनपुरी है, ये है अपना लखनऊअंशुमान शुक्लhttp://www.blogger.com/profile/09666492678043519524noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8233234471735056173.post-32059210454208593102010-09-28T09:48:00.000-07:002010-09-28T09:51:26.488-07:00क्या होगा मंदिर, मस्जिद, मीनारों का<br />पत्थरो के भीतर कही भगवान बसते है<br />उन्हें देखो ऊपर की तरफ आख़े गड़ाए<br />खुदा की आस में आसमान तकते है<br />ये मंदिर वो मस्जिद, ये पीर वो फकीर <br />लालची नजरो से इन्सान तकते है<br />गर मंदिर बना तो क्या हासिल होगा<br />गर मस्जिद बनी तो क्या खो दोगे <br />वक्त बहुत है लौट चलो घरो की तरफ<br />आख उठा कर देखो अपनों की तरफ<br />इंसान बनना बहुत आसन है, बनो<br />न हिन्दू बनो न मुस्लमान बनोअंशुमान शुक्लhttp://www.blogger.com/profile/09666492678043519524noreply@blogger.com1