शाम ढली, उड़ चले बगुले
सूरज का पेट फाड़, घोसलों की ओर
कुछ अंतिम पल जूझता प्रकाश
अन्धकार के बाद सुबह होगी
अँधेरी चादर में आकाश के नीचे
तारों का त्रिपाल तान कर
मैं करता सुबह का इंतज़ार
रात कटती नहीं, बहुत लम्बी है
एक झपकी, झूमता शरीर, नींद की गोद
यक ब यक फुसफुसाते बगुले
अँधेरे से आती प्रकाश की आस
सब बदल गया, हार गई कालिमा
सुबह होती है, सूरज पक्षपात नहीं करता
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