Friday, May 25, 2012

धुप में नंगे पाँव, आहिस्ता आहिस्ता... डगमगाती चलती है उम्मीद पाले जिन्दगी'... कभी रिक्शे पर तो कभी हाथ गाड़ी पर... दोनों हाथों से रास्ता बनाती चलती है जिन्दगी... मंजिल तक पहुचने से पहले एक नज़र की भूखी... रहनुमाओं की रहबर बनती चलती है जिन्दगी... गरीबी सिर्फ भूख और प्यास की होती तो क्या था... विचारों की गरीबी ढोती चलती है जिन्दगी... हर कदम हमनवाज़ मिल ही जाते हैं... कहीं हम्नवाज़ों से भला चलती है जिन्दगी... कितना झुकूं, कितना सम्ह्लू और कितना... डगमगाती चलती है उम्मीद पाले जिन्दगी...

1 comment:

  1. अंशुमान भाई आपकी बात ह्रदय स्पर्शी है आप यूँ ही लिखते रहें ऐसे मेरी ईश्वर से कामना है

    ReplyDelete