गजब है इंसान भी...
लगातार बार बार संघर्ष...
अपने आप से और उस समाज से...
संघर्षों की लम्बी फेहरिश्त, राशन की रसीद की तरह...
कभी तेल, कभी नून, कभी लकड़ी के झंझावत...
उसमे फंसा कसमसाता, रास्ता ढूंढ़ता, कन्धों से कन्धा रगड़ता...
गजब है इंसान भी. गरीबी की भाग्यरेखा गदोरी में समेटे...
मुट्ठी बांधे, सब पाने की अभिलाषा पाले...
रोज़ निकालना और घर वापस आना, हारे हुवे सेनानी की तरह...
गजब है इन्सान भी....
आम आदमी के दैनिक जीवन की वास्तविकता !!!!
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