Tuesday, October 12, 2010

तुम मोहब्बत की इक ग़ज़ल हो या हो जज्बात
तुझे पाने की उम्मीद बड़ी लगती है..
तेरा आना इक ख्वाब से ज्यादा क्या है..
तेरा होना कोई चीज़ बड़ी लगती है..
तुम रूह में उतरे कुछ इस कदर यारा..
की अब जिस्म से ये रूह बड़ी लगती है..
तुम्हे चाहू, तुम्हे पाऊ तुम्हे अपनाऊ कैसे
तेरे कंधे पर मेरे आसुओ की हर बूंद बड़ी लगती है...

3 comments:

  1. हैवानों की सोहबत में,
    मैं भी कुछ ऐसा हो गया,
    कुत्ता आया,टुकड़ा खाया,
    सीढ़ी पर ही सो गया....

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  2. No comment! Please. The issue is beyond my capacity to grab.

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