Wednesday, September 29, 2010

मेरे सहर को महफूज़ रखना.मंदिर मस्जिद से इसे दूर रखना
यहाँ की फिजा का रंग बसंती है,यहाँ के दरवाज़े भी अकबरी है
वाजिद अली साह की वो इन्दर सभा
गंगा जमुनी तहजीब की वो सफा
नवाबियत के अफसाने और गीत
सहरे लखनऊ में मिलता है मोहब्बत का संगीत
महज़ कुछ लोगो का लखनऊ नहीं ये
हिन्दू मुसलमानों का सहर नहीं ये
ये जन्नत है इंसानों की, मोहब्बत की पैगामो की
ये लछमनपुरी है, ये है अपना लखनऊ

1 comment:

  1. Great Love to Lucknow. But the city of Nawabs has gone tremendous change over the years. Dada, This is a effort to keep the romance alive with.

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