Tuesday, July 20, 2010

पलकों में काटी है कई रात, ख्वाबो में देखा है तुम्हे बहुत जतन के बाद
स्वागत है ओ बारिश की बूंदों, आओ मेरी प्यारी बरसात
ये सड़को का भरना के अखबारों का विलाप
हमेशा होता है तुम्हारे आने पर, इनकी बेरुखी से रूठ न जाना
पड़े लिखो को गाव की सुध कहा. ठण्डे कमरों का उन्हें ख्याल है
हड्डी की ढाचे में तब्दील हो चुका किसान उन्हें नहीं दीखता
उन्हें तो अपनी सड़क और घर के सामने की गली याद है
बहुत हुवा तो सहर में रहने वाले उन जैसे उनको दीखते है
पन्नियो के ढकी नाली और डूबी मोटरों का खौफ
इससे ज्यादा नहीं बढ पाए ये, दिल्ली को देश मान लिया इन्होने
खूब बरसो, झमाझम बरसो ऐ बरखा रानी
किसान और खेत दोनों मांग रहे है पानी

2 comments:

  1. dil ki gehraiyon se likhi gai bahut sunder rachna.....badhai..

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  2. mere blog join kariye...
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