Sunday, May 23, 2010

वह हौलनाक मंज़र जिसने देश को हिला दिया

उनके सपने टूट गए, अपने उनसे रूठ गए
वतन पहुचना, उम्मीदों का परवान चड़ा
फिर सपने टूटे और धरा पर बिखर गए
जलती आग उधर भी थी और इधर भी
एक उम्मीद न छुटी सुब यही पुर छूट गए
उनके सपने टूट गए, अपने उनसे रूठ गए
दुर्घटना की नाप जोख में बिसरापन
इतनी जल्दी कैसे हम उनको भी भूल गए
उड़ना चलना इंसानी फितरत है
इस फितरत में वो बहुत पीछै छूट गए
अब बीता कल किसे याद रहा करता है
कल की बात यहाँ कौन किया करता है
जिसको जाना था वो तो चला गया
रोना धोना यही बाकि बचा रहा
जिनका अपना छुटा उनका हाल जरा देखो तो
उनके दिल में जमी जड़ो को तुम छु लो तो
साहस करना अलग बात हुवा करती है
दुस्साहस करने की हिम्मत हो तो बोलो

1 comment: