Sunday, May 23, 2010

तू क्यों ढूढता है सकू इस जहा में
सभी इसकी खातिर सितम सह रहे है
फरेबी जहा में किसे कह दू अपना
जिसे देखो सब ही दगा दे रहे है
मेरे मालिक तू ही कोई हल बता दे
जहा भुर का गम अपने भीतर समां ले
तेरी ये अमानत भी महफूज़ नहीं अब
नफरतो की नस्तर दिलो में गड़े है
ये रिश्ते ये नाते कहा याद है अब
हर एक जगह पुर बुत ही खड़े है
तेरे इस जहा का नियम है निराला
इंसान ही इंसान के दुसमन बने है
क्या खूब है तेरी ये मायानगरी
कटपुटलियो के सहर के सहर बसे है
क्या लेगा तू जिम्मा इनके कियो का
तेरी उंगलियों पुर ये चल फिर रहे है

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