हर पल अनुभवों का
एक विश्वाश प्रस्नचिंह जीवन
विश्वाश कागज़ की नाव बना
ढलती उम्र वह सुखा पेड़
झंझावातो जी झनझनाहट
अब नहीं झेले जाते टूटे विश्वाश
रेगिस्तान जहा नहीं कोई पास
प्यास समुद्र पी जाऊ बुझती नहीं
क्या करू, किधर चालू, किस्से पूछु
कागज़ के उरते जहाज देख याद आया
सब कुछ तो है अभी क्या बिगड़ा है
बस ये लोग जो सचमुच का जहाज उड़ा रहे है
डरे है सहमे है
bahut sunder rachna hai..
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