Monday, May 31, 2010

कलम बदल गयी लोगो के मिजाज़ की तरह, सियासत और सरकार की तरह,
समाज क्या बदला कलम भी बदल डाली, अब किसे याद है श्याही की होली
शब्दों को बदलने के लिए पड़ा लिखा होना जरूरी था, बड़ी माथापच्ची थी
पूरे समाज को इस काम के लिए साथ लेना जरूरी था, कौन पचड़े में पड़ता
हमने अपनी सारी खुन्नस कलम पर ही उतारी, कलम बदल डाली
जिस तरह हमने कलम बदली, खुद को भी बदला होता
स्वार्थ का फटा चोला उतार कर मानवता का दामन पकड़ा होता
बहुत पचड़े थे इस कम को अंजाम तक पहचाने में, खुद भी फसने का डर था
लोगो की सोच बदलने की छमता थी कहा किसी में, सोचा कलम बदल डालो
कलम बदल जाएगी तो शब्द भी बदल जाये शायद, शब्द बदले तो शयद बदल जायेगा समाज
लेकिन कुछ नहीं बदला, सिर्फ कलम बदली, उसने सही और गलत की सोच ही बदल डाली

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