Sunday, May 30, 2010

अम्मा जाओ, बड़े आये पाठ पड़ने
किताबी ज्ञान की चाट की दुकान सजाने
अवसरवाद के पानी में डुबो कर बनाये गाये गोलगप्पे
भ्रस्टाचार की सीक में पिरोये दोने में हमे नहीं खाने
तुम्हारी टिकिया पर भिनभिनाती लालच की मक्खिया
लोगो की भूख और लाचारी की दही में डूबे दहीबड़े
नैतिकता के कचालू में पड़े आलू सड़े गले
इन पकवानों के खरीदार और है
उनके पेट की आग और है
वो इन्हें पचा लेगे, लोगो का हक़ खाना उनकी आदत है
हमको अपनों का हक़ खाने की आदत नहीं
कोई और ग्राहक पटाओ, अम्मा जाओ
बड़े आये पाठ पड़ाने

1 comment:

  1. खाना खाने के बाद चाट अच्छी लगी.

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