हर सुबह के निकलने के साथ ही
उगता है एक अरमान कामयाबी का
भरता उत्साह अथक परिश्रम का
बौद्धिक स्तर की उचाई ओर गहराई का
प्रयास दर प्रयासओर परिश्रम
अंतर्मन कहता है अब भाग चलो तुम
लेकिन स्वाभिमान रोकता है जूझने को
या तो इस पार या उस पार करने को
हर पल बौद्धिक कसरत, टूटना भी हर पल
समेटना अपने आप को, जूझना भी हर पल
कभी विश्वाश होता है, कल तुम्हारा है
जो रोज़ टुटा है वाही इस पार आया है
फिर जुट जाना रफ़्तार तेज कर
कल हमारा होगा बस यही सोच कर
Sunder abhivyakti.
ReplyDeleteअंशुमान जी,
ReplyDeleteआपने एक लंबा सफ़र तय कर लिया है... अब तो मंजिल सामने दिख रही है.... मैदान के सामने देखिये जहां आकाश और ज़मीं मिल रही है... वही आपकी मंजिल है... आपका ये काव्यात्मक प्रयास सराहनीय है... आगे बढ़िये... कुछ फालोवर दिख रहे हैं, निश्चित रूप से काफिला बनेगा...
...नवल