Monday, May 24, 2010

हर सुबह के निकलने के साथ ही
उगता है एक अरमान कामयाबी का
भरता उत्साह अथक परिश्रम का
बौद्धिक स्तर की उचाई ओर गहराई का
प्रयास दर प्रयासओर परिश्रम
अंतर्मन कहता है अब भाग चलो तुम
लेकिन स्वाभिमान रोकता है जूझने को
या तो इस पार या उस पार करने को
हर पल बौद्धिक कसरत, टूटना भी हर पल
समेटना अपने आप को, जूझना भी हर पल
कभी विश्वाश होता है, कल तुम्हारा है
जो रोज़ टुटा है वाही इस पार आया है
फिर जुट जाना रफ़्तार तेज कर
कल हमारा होगा बस यही सोच कर

2 comments:

  1. अंशुमान जी,
    आपने एक लंबा सफ़र तय कर लिया है... अब तो मंजिल सामने दिख रही है.... मैदान के सामने देखिये जहां आकाश और ज़मीं मिल रही है... वही आपकी मंजिल है... आपका ये काव्यात्मक प्रयास सराहनीय है... आगे बढ़िये... कुछ फालोवर दिख रहे हैं, निश्चित रूप से काफिला बनेगा...
    ...नवल

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