Sunday, May 23, 2010

भूख पेट की सपने नहीं संजोने देती
इस सरीर को हसने और ना रोने देती
रोटी का बंदोबस्त ही ध्ये बन जाता है
ज्वाला पेट की चैन से नहीं है सोने देती
बिलख रहे है बालक पेट की भूख के मारे
है तो यह भी अपनी माँ की राजदुलारे
लेकिन माँ का दूध भी पेट ना भुर पता है
रोते रोते बच्चा चिपट कर सो जाता है
भरे पेट से समझ सको गे क्या इस जग को
क्या दोगे बोलो आखिर तुम इस जग को
वाही लूट का धन पेट भरने की खातिर
औरो को भूखा मारोगे अपनी खातिर
ना जाने कब समझ सकोगे तुम सच को प्यारे
औ अपनी माँ के प्यारे राजदुलारे
देश की खातिर आब तो एक पल जीना सीखो
एक रोटी में सभी बाँट कर खाना सीखो
ना रह जायेगा यह तन न भूख तुम्हारी
देश के कण कण से टपकेगी खुशहाली
हम न होगे फिर भी रहेगी याद हमारी

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