Sunday, May 23, 2010

तू निराकार है या साकार
सूली पर है या मठ में
मै क्या जानू
तू मस्जिद में या गुरूद्वारे में
गलियों में या चौराहों पर
मै नहीं तुझे है पहचानू
पर तुझपर है विश्वाश चिरंतर से मेरा
आकाश, पाताल हो या नदिया
समतल भूमि हो या चोटिया
तुम्हारे सृजन को मै देख रहा हु
मन ही मन मै पूज रहा हु
पर क्या तू ये बतला पायेगा
इंसानों की इस दुनिया में कब तक जिन्दा रह पायेगा
यदि तो है तो दे ही दे उत्तर इसका

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