चलो सपना देखा जाये, तारो को अंगूठी में पिरोना
आधे चाँद का झूला बना कर पेंग बढाना
आसमान पर पैदल चल कर बादलों से बूंद चुराना
ओस कि बूंद से ढकी घास पर गुलाटी खाना
समुद्र के भीतर मकान बनाना
बरफ से ढके पहाड़ पर धूप सेकना
आकाश में उड़ रही चिडियों को दाना चुगना
सपने है इसलिए इन्हें देखा जा सकता है
लेकिन अब तो सपना देखना भी नामुमकिन सा है
प्रदुषण ने तारो को ढक लिया है
चाँद पर चरखे पर सुँत काटती नानी मर चुकी है
ओस कि बूंदों पर चलना सच सपना ही है
समुद्र प्रदूषण का कोप झेल रहे है
बरफ पहाड़ो पर आब पड़ती ही नहीं
चिडया लुप्त हो रही है
इसलिये सपना देखो हकीकत नहीं देख पाओगे
जो कहा आपने,
ReplyDeleteसच कहा...
सच है सपने सपने होते हैं,
लेकिन ऐसे भी लोग हैं यहाँ
जिनके सपने पूरे होते हैं,
चचा कलाम भी कहते हैं कि
पहले सपने तो देखो,
करो कोशिश, करो प्रयास,
मेरे दोस्त मत हो उदास,
क्योंकि सपने भी पूरे होते हैं,
सपने पूरे भी हो सकते हैं,
जो कहा आपने,
सच कहा...
-अंशुमान जी आपकी कविता पसंद आयी.
न हॊ कुछ भी
ReplyDeleteसिर्फ सपना हॊ
फिर भी हॊ सकती है
शुरुआत
और यह शुरुआत ही तॊ है
कि यहां
एक सपना है।
cool shayarizzzzzz....
ReplyDeleteAchche patrakar hone ke saath aap achche kavi bhi hain ye nahi pata tha
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