Sunday, May 23, 2010

कुछ ही दिन आते है जब आती है याद सहीदो की
गूंज उठती है ये धरती देश भक्ति के गीतों से
कैसा सुकून होता है उस दिन, कैसी हस्ती है धरती
लगता है भारत का बचपन किलक रहा है गीतों से
पंछी भी गाते है गाना भारत माँ की शान में
उड़ जाते है अनंत आकाश में स्वंत्रता की छाव में
कुछ ही दिन आते है जब आती है याद सहीदो की
गूंज उठती है ये धरती देश भक्ति के गीतों से
क्या वैसा समां क्या वैसी छठा नहीं रह सकती है रोज यहाँ
क्या इस माटि की वैसी सुगंध उठ सकती है रोज़ यहाँ
सब संभव है मन में झाको सब नाच उठेगा
दुर्भाग्य देश का रो रो कर तुमको पुकार उठेगा
अपराध बोध से दो पग भी न चल पाओगे
अपने से ही अपनी नज़रे चुरा जाओगे
क्या नहीं झिझकता मन अपनों का खून चूसते
हे पशु मानव बन जा अपना जहर थूक दे
कर प्रयास और देश में भर दे तू खुशाली
तब बिखरेगी यहाँ पुनः प्रभात की लाली
मस्तक ऊचा कर के तू भी तब मर जाना
तेरे नाम का लोग यहाँ गायेगे गाना
तेरी माँ भी देवी होगी तेरी भी तब होगी पूजा
तेरे सत्कर्मो की राह पर होगा पैदा गाँधी दूजा
तब न होगी कमी यहाँ पर मतवालों की
नारी होगी रानी झासी पुरुष भी होगा आज़ाद और गाँधी

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