Sunday, May 2, 2010

रातों को जगकर यूं मुझको सुलाना,
परियों की मुझको कहानी सुनाना,
याद है मुझको बचपन की यादें,
माँ का वह आँचल वो ककहरे की किताबें...

3 comments:

  1. bahut achchhe chacha... yun hi likhte rahiye....

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  2. Apne Blog ko koi sunder sa sahityik naam dijiye bhai ji.... fir me use design karke dunga... blog ko sunder aur akarshak banaiye...

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  3. वाह अंशुमन भाई। मस्‍त मस्‍त ब्‍लाग है।
    वही देसी खांटी बोली।
    कांधे पर गमछा चाहे कुर्ता हो या सूट, कार पर हो या देशज बैठे का अंदाज। बस वर्तनी की कुछ दिक्‍कतें हैं।
    अब लगातार आता रहूंगा।
    कुमार सौवीर

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